समय पत्रिका ने दो साल पूरे कर लिए हैं। पता ही नहीं चला वक्त कब गुज़र गया। पहले अंक से ही हमारा प्रयास रहा कि पाठकों को अच्छी किताबों की उन्नत जानकारी दी जाए। प्रकाशकों का भी सहयोग बना रहा। इस अंक में आप पढ़ेंगे गिरमिटिया मजदूरों की हैरान करने वाली दास्तानें। प्रवीण कुमार झा ने एक अहम दस्तावेज 'कुली लाइंस' हमारे सामने रखा है जिसके लिए उन्हें कई देशों की यात्राएँ और अथक परिश्रम करना पड़ा। भारत और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के पूर्व प्रमुखों के बीच बातचीत पर आधारित पुस्तक 'रॉ, आईएसआई और शांति का भ्रम' कई खुलासे करती है। इसे पढ़कर दोनों देशों की राजनीति को भी समझा जा सकता है। मार्क्सवाद पर चर्चा करती अनंत विजय की पुस्तक 'मार्क्सवाद का अर्धसत्य' वामपंथी विचाराधारा आदि पर खुलकर बात करती है। इस पुस्तक में लेखक ने तथाकथित बुद्धिजीवियों पर करारा प्रहार किया है। प्रभात प्रकाशन की दो ख़ास किताबें आयी हैं। एक है मंजीत हिरानी की 'जीने के नुस्खे बड्डी से सीखें' और दूसरी है सोहा अली खान की 'मशहूर हुए तो क्या हुआ?'। समय पत्रिका में डेल कारनेगी की पांच ख़ास प्रेरणादायक किताबों पर चर्चा की गई है। इसके अलावा दुर्जोय दत्ता और श्वेता बच्चन के पहले उपन्यास के हिन्दी अनुवाद के बारे में पढ़ेंगे।
समय पत्रिका हिंदी की मासिक पत्रिका है.