किताबों की बिक्री में उछाल देखने को मिला है। यह प्रकाशन उद्योग के लिए अच्छी खबर है। पाठक अलग-अलग माध्यमों से किताबों तक पहुंच रहे हैं। हालांकि अभी भी पेपरबैक या हार्डकवर पढ़ने वालों की तादाद बहुत अधिक है। वो अलग बात है कि इ—बुक का बाज़ार पिछले कुछ सालों में गति पकड़ा है, मगर उन्हें जिस गति से डाउनलोड किया जाता है, उस गति से पढ़ा नहीं जा रहा।
समय पत्रिका के इस अंक में प्रीति शेनॉय की दो ख़ास किताबें —’जिंदगी बुला रही है’ और ‘कुछ तो है तुमसे राब्ता’ की चर्चा की है। साथ ही अभिनेता गुलशन ग्रोवर की आत्मकथा 'बैड मैन' के हिंदी अनुवाद पर महेश भट्ट के विचार प्रकाशित किए हैं। गुलशन ग्रोवर ने करीब 500 फिल्में की हैं, जिनमें से 31 अंतरराष्ट्रीय फिल्में हैं। ब्रिटिश, कनाडाई, फ्रेंच, जर्मन और इटालियन फिल्में करने के अलावा पहले भारतीय अभिनेता हैं जिसने पोलिश, मलेशियाई और ईरानी फिल्म में काम किया है।
रामकुमार सिंह और सत्यांशु सिंह की किताब 'आइडिया से परदे तक' इन दिनों चर्चा में है। यह किताब इस साल की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली किताबों में शामिल हो गयी है। फिल्म के लेखक बनने के ख़ास गुर यह किताब सिखलाती है। साथ ही फिल्मी दुनिया की कई अहम और जरुरी जानकारी यह प्रदान करती है।
वाणी प्रकाशन से अमीर ख़ुसरो पर एक बेहद शानदार किताब आई है। यह उर्दू से हिन्दी अनुवाद है। इसमें ख़ुसरो की तमाम काव्य विधाओं का उल्लेख किया गया है। उनकी पहेलियों की व्याख्या और विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
साथ में नई किताबों की चर्चा।
समय पत्रिका हिंदी की मासिक पत्रिका है.