Roobaru Duniya
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Roobaru Duniya

  • Will on Wheels - Deepa Malik - Arjuna Award Winner
  • Price : 15.00
  • Roobaru Duniya
  • Issues 10
  • Language - Hindi
  • Published monthly
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कई बार एक सवाल मन में कौंधता है कि असल ग्लेमर, सम्मान, तरक्की, नाम, लोगों की अटेंशन सिर्फ और सिर्फ "टीवी या परदे पर अदाकारी दिखा रहे लोगों को ही क्यों मिलती है ?" उन लोगों को क्यों नहीं जो सही मायनों में ज़िन्दगी में कुछ हासिल करके, अपने दम पर खड़े हो रहे हैं.... नहीं जानती कि इस सोच से कितने लोग इत्तेफ़ाक रखते होंगे, लेकिन इस बार रूबरू दुनिया के आगामी अंकों के लिए दीपा मलिक जैसे लोगों से मिली तो लगा कि क्यूँ हम या हमारी सोच इन्हें वह ओहदा नहीं देती जो ये डिज़र्व करते हैं ? जब दीपा मलिक का फ़ोटो शूट करने के लिए वो घर के बाहर लॉन वाले एरिया में आयीं तो मन में एक सवाल आया कि "आज अगर इनकी जगह, ऐश्वर्या राय या कोई भी फ़िल्मी हस्ती या क्रिकेट के जुड़े नामी लोगों में से कोई इस तरह अपने घर के बाहर आया होता तो क्या इतना ही शांत माहौल रहता ? भीड़ नहीं लगी होती ? फ़ोटो खींचने, ऑटोग्राफ लेने या दो मिनिट बात करने की होड़ नहीं लगी होती ?" लेकिन वहां तो ऐसा कुछ नहीं था, एक ऐसी स्त्री जिसने अपनी ज़िन्दगी में अपने शरीर का सबसे अहम् हिस्सा शून्य हो चुकने के बाद ख़ुद को फिर से खड़ा किया अपने दम पर, 50 से भी ज्यादा नेशनल अवार्ड्स जीते, 10 से भी ज्यादा इंटरनेशनल अवार्ड जीते, कई बार लिम्का बुक में अपना नाम दर्ज कराया, अर्जुन अवार्ड जीता, जिसे हरयाणा की एक खाप ने "पुरुष प्रधान सम्मान, "गदा"" भेंट करके उसके मजबूत हौसलों को सम्मानित किया, क्या हम उसे वही सम्मान दे रहे हैं ?? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि वह विश्व सुंदरी बनने की प्रतियोगिता में नहीं गयी ? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि वह बड़े परदे पर अदाकारी नहीं दिखाती ? या क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि वह फिल्म जगत से नहीं ? कभी सोचियेगा इन सवालों के जवाब और अपने मन को टटोलियेगा कि सेलेब्रिटी आप किसे और क्यूँ मानते हैं... क्या सिर्फ सुन्दरता और बड़ा पर्दा ही आपके मापदंड हैं ? खैर, आप सोचकर अपने विचार तो भेजिएगा ही, साथ में इस अंक में रूबरू होते हैं इस महान हस्ती से, जानते हैं कैसा रहा उनकी ज़िन्दगी का चुनौतियों भरा सफ़र, और कैसे हासिल किये उन्होंने इतने ऊँचे मुक़ाम। नव वर्ष की शुरुआत पर अगर कुछ सीखना चाहें या आने वाले समय को जज़्बे से भरा बनाना चाहें तो इनसे सीख सकते हैं, और आप भी अपने आने वाले कल में वो हासिल करने की सीख पा सकते हैं जिसके लिए आप अब तक रुके हैं। इसके अलावा और भी है बहुत कुछ, तो कुछ मिनिट बिताकर होते हैं रूबरू देश और समाज की कुछ बातों से। आप सभी को नव वर्ष की तहे दिल से शुभकामनाएँ। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में।

यह पत्रिका भारत के समाचारपत्रों के पंजीयन कार्यालय (The Registrar of Newspapers for India, Govt of India) द्वारा पंजीयत है जिसका पंजीयन नंबर MPHIN/2012/45819 है। 'रूबरू' उर्दू भाषा का एक ऐसा शब्द जिससे हिंदी में कई शब्द जुड़े हैं, जैसे 'जानना', 'अवगत होना', 'पहचानना', 'अहसास होना' आदि, मौखिक रूप से इसका मतलब है कि अपने आस पास की चीजों को जानना जिनके बारे में हमे या तो पता नहीं होता, और पता होता भी है तो कुछ पूरी-अधूरी सी जानकारी के साथ | इसलिए रूबरू दुनिया का ख़याल हमारे ज़ेहन में आया क्योंकि हम एक ऐसी पत्रिका लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं जो फिल्मजगत, राजनीति या खेल से हटकर असल भारत और अपने भारत से हमे रूबरू करा सके | जो युवाओं के मनोरंजन के साथ-साथ बुजुर्गों का ज्ञान भी बाटें, जो महिलाओं की महत्ता के साथ-साथ पुरुषों का सम्मान भी स्वीकारे, जो बच्चों को सीख दे और बड़ों को नए ज़माने को अपनाने के तरीक बताये, जो धर्म जाती व परम्पराओं के साथ-साथ विज्ञान की ऊँचाइयों से अवगत कराये और विज्ञान किस हद तक हमारी अपनी भारतीय संस्कृति से जुड़ा है ये भी बताये, जो छोटे से अनोखे गावों की कहानियां सुनाये और जो तेज़ी से बदलते शहरों की रफ़्तार बताये, जो शर्म हया से लेकर रोमांस महसूस कराये और जो हमें अपनी आधुनिक भारतीय संस्कृति से मिलाये | सिर्फ इतना ही नहीं इस मासिक पत्रिका के मुख्य तीन उद्देश्य "युवाओं को हिंदी और समाज से जोड़े रखना, समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाने के लिए जागरूकता फैलाने और उन्हें दूर करने में युवाओं की भूमिका को बनाये रखना, और नए लेखकों को एक प्लेटफार्म देना" के अलावा हिंदी साहित्य को संग्रहित व् सुरक्षित करने के साथ साथ एक ऊँचाई देना भी है | इस पत्रिका की मुख्य संपादक व प्रकाशक अंकिता जैन हैं |