इस बार रूबरू दुनिया की कवर स्टोरी नारियों और महिला दिवस से सम्बंधित है पर फिर भी अलग है। इस बार हम प्रकाश डाल रहे हैं एक अनछुए पर ज़रूरी पहलु पर नारी का आत्ममंथन। हम अक्सर अपने लेखों में महिलाओं के सामने पड़ी विषमताओं, सामाजिक बंधनों की बात करते ही हैं पर नारी की कमियों पर कभी आत्ममंथन की बात नहीं होती। क्या महिलायें इंसान हैं? हाँ! (क्या बेवकूफी भरा प्रश्न है ना), इंसान हैं और इंसानो में कमियाँ होती हैं। अपनी खामियों को पहचानकर, उनकी स्थिति जान कर ही उनका उन्मूलन किया जा सकता है। अड़चन यह है कि एक तो बुराई, निंदा के मामले में पुरुषों पर लाइमलाईट रहती है, दूसरा आत्ममंथन की बात को वर्ग कमज़ोरी से जोड़ कर देखा जबकि स्वयं का ईमानदारी से आंकलन तो अपनी एवं अपने वर्ग की मज़बूती की ओर पहला कदम होते हैं। तो इस शुरुआती व सबसे अहम् संवाद से जी क्यों चुराना? इसी सोच के साथ निष्पक्षता के साथ इस आंकलन को आगे बढ़ाते हैं। संभव है आप इस आंकलन में स्वयं को खरा-सौ प्रतिशत पाती हैं पर यहाँ पूरी नारी जाती को लिया जा रहा है। अगर निम्नलिखित बातों में से एक या ज़्यादा आप अपनी जानकारी में किसी स्त्री में पाती (या पाते हैं) तो उनके भले और प्रगति के लिए उन्हें अवगत कर जागरूक बनाने में देरी ना करें।
यह पत्रिका भारत के समाचारपत्रों के पंजीयन कार्यालय (The Registrar of Newspapers for India, Govt of India) द्वारा पंजीयत है जिसका पंजीयन नंबर MPHIN/2012/45819 है। 'रूबरू' उर्दू भाषा का एक ऐसा शब्द जिससे हिंदी में कई शब्द जुड़े हैं, जैसे 'जानना', 'अवगत होना', 'पहचानना', 'अहसास होना' आदि, मौखिक रूप से इसका मतलब है कि अपने आस पास की चीजों को जानना जिनके बारे में हमे या तो पता नहीं होता, और पता होता भी है तो कुछ पूरी-अधूरी सी जानकारी के साथ | इसलिए रूबरू दुनिया का ख़याल हमारे ज़ेहन में आया क्योंकि हम एक ऐसी पत्रिका लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं जो फिल्मजगत, राजनीति या खेल से हटकर असल भारत और अपने भारत से हमे रूबरू करा सके | जो युवाओं के मनोरंजन के साथ-साथ बुजुर्गों का ज्ञान भी बाटें, जो महिलाओं की महत्ता के साथ-साथ पुरुषों का सम्मान भी स्वीकारे, जो बच्चों को सीख दे और बड़ों को नए ज़माने को अपनाने के तरीक बताये, जो धर्म जाती व परम्पराओं के साथ-साथ विज्ञान की ऊँचाइयों से अवगत कराये और विज्ञान किस हद तक हमारी अपनी भारतीय संस्कृति से जुड़ा है ये भी बताये, जो छोटे से अनोखे गावों की कहानियां सुनाये और जो तेज़ी से बदलते शहरों की रफ़्तार बताये, जो शर्म हया से लेकर रोमांस महसूस कराये और जो हमें अपनी आधुनिक भारतीय संस्कृति से मिलाये | सिर्फ इतना ही नहीं इस मासिक पत्रिका के मुख्य तीन उद्देश्य "युवाओं को हिंदी और समाज से जोड़े रखना, समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाने के लिए जागरूकता फैलाने और उन्हें दूर करने में युवाओं की भूमिका को बनाये रखना, और नए लेखकों को एक प्लेटफार्म देना" के अलावा हिंदी साहित्य को संग्रहित व् सुरक्षित करने के साथ साथ एक ऊँचाई देना भी है | इस पत्रिका की मुख्य संपादक व प्रकाशक अंकिता जैन हैं |