इन गर्मियों में कई अच्छी किताबें आयी हैं। राजकमल प्रकाशन ने डॉ. भीमराव आंबेडकर पर दो किताबें प्रकाशित की हैं। अरुंधति रॉय की 'एक था डॉक्टर एक था संत' में भारत में जातिगत पक्षपात, पूंजीवाद, पक्षपात के प्रति आंख मूंद लेने की आदत, आम्बेडकर की बात का गांधीवादी बुद्धिजीवियों द्वारा खंडन और संघ परिवार के हिंदू राष्ट्र के विषय में खुलकर लिखा गया है। क्रिस्तोफ़ जाफ़्रलो ने विभिन्न स्रोतों तथा आंबेडकर से संबंधित उपलब्ध विश्वभर के साहित्य तथा पुस्तकों से लिए प्रमाणों के आधार पर आंबेडकर के जीवन के संघर्षों तथा दलित समुदाय में क्रांतिकारी जागरुकता में किए उनके प्रयासों का निष्पक्ष और लयात्मक भाषा-शैली में वर्णन किया है। मनोहर श्याम जोशी के अनकहे पहलुओं को उजागर करती प्रभात रंजन की पुस्तक 'पालतू बोहेमियन' बेहद दिलचस्प है। इसमें ढेरों किस्से हैं जहां जोशी जी पाठकों को प्रभावित करते हैं और हैरान भी। वाणी प्रकाशन ने श्रीलाल शुक्ल पर एक बेहद ख़ास पुस्तक प्रकाशित की है। वहीं हेरम्ब चतुर्वेदी ने 'कुम्भ : ऐतिहासिक वाङ्मय' नामक पुस्तक में कुम्भ अखाड़ों और संन्यासियों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। साथ में पढ़ें नई किताबों की चर्चा।
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