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Roobaru Duniya
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Roobaru Duniya

By: Roobaru Duniya
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  • "क्या होता है चिल्ड्रन्स डे.. मैंने तो नहीं सुना कभी" - Children's Day 2014 Special
  • Price : 25.00
  • Roobaru Duniya
  • Issues 10
  • Language - Hindi
  • Published monthly

About this issue

ज़िन्दगी का सबसे सुन्दर पड़ाव है बचपन, जहाँ न कल की चिंता होती है न आज की फिकर। हर इंसान अपने बचपन की यादों को सारी ज़िन्दगी याद करता है और जब भी मुस्कुराने का दिल करता है उन्ही यादों को दोहराकर खुश हो लेता है। और शायद हमारे बचपन को इतना बेफिक्र और महफूज़ बनाते हैं हमारे माता-पिता, जिनके साये का एहसास हमें तसल्ली देता है कि वो हैं तो सब कुछ ठीक है। अगर हमें स्कूल में किसी ने मारा तो हम उससे लड़ाई करने में डरते नहीं क्योंकि हमें पता होता है कि आखिर में पापा हमे बचा ही लेंगे, या हमें खाने पीने कि चिंता नहीं होती क्योंकि हमें यकीन होता है कि माँ हमे खाना खाने का याद दिला ही देगी। लेकिन शायद सबकी किस्मत एक सी नहीं होती, हम अक्सर हमारे आसा-पास कुछ ऐसे बच्चों को भी देखते हैं जो बिना वजह लोगों कि मार का शिकार बन जाते हैं या भूखे घूमते रहते हैं लेकिन उन्हें बचाने के लिए न तो उनके पिता होते हैं ना खाना खिलने के लिए माँ। जिस बात को सिर्फ सोचने भर से शरीर कांपने लगे उस बात का असल एहसास कितना दर्द देता होगा। पर शायद ये बात हम तब भूल जाते हैं जब हम बस या ट्रेन में किसी भीख मांगने वाले बच्चे को झिंझोड़ देते हैं, या उन्हें बुरी नज़र से देखते हैं, या जब कोई गरीब बच्चा दूर से हमारे बच्चे को आस भरी नज़रों से देखता है तो हम उसे गलियां देते हैं। उस वक़्त हम ये भूल जाते हैं कि कोई भी बच्चा अपनी मर्ज़ी से भिकारी नहीं बनता बल्कि हर बच्चा अपने बचपन को जीना चाहता है। चौराहे पर, सिग्नल पर किसी बच्चे को भीख में एक का सिक्का तो पकड़ा दिया लेकिन क्या कभी उससे बात करने की इच्छा हुआ ? क्या कभी उससे पूछा कि वो उस एक रुपये का क्या करता है ? शायद नहीं ... तो पढ़िए इस अंक में कि आखिर कहाँ से आते हैं ये बच्चे ... क्या होती है इनकी कहानी ... हमने बात की ऐसे ही कुछ बच्चों से .. !! इस माह का ये अंक हम इन्ही बच्चों के एहसास को समाये हुए लाये हैं। तो चलिए रूबरू होते हैं बाल-मन के उस एहसास से जो हमने महज़ देखा है भोगा नहीं ।

About Roobaru Duniya

यह पत्रिका भारत के समाचारपत्रों के पंजीयन कार्यालय (The Registrar of Newspapers for India, Govt of India) द्वारा पंजीयत है जिसका पंजीयन नंबर MPHIN/2012/45819 है। 'रूबरू' उर्दू भाषा का एक ऐसा शब्द जिससे हिंदी में कई शब्द जुड़े हैं, जैसे 'जानना', 'अवगत होना', 'पहचानना', 'अहसास होना' आदि, मौखिक रूप से इसका मतलब है कि अपने आस पास की चीजों को जानना जिनके बारे में हमे या तो पता नहीं होता, और पता होता भी है तो कुछ पूरी-अधूरी सी जानकारी के साथ | इसलिए रूबरू दुनिया का ख़याल हमारे ज़ेहन में आया क्योंकि हम एक ऐसी पत्रिका लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं जो फिल्मजगत, राजनीति या खेल से हटकर असल भारत और अपने भारत से हमे रूबरू करा सके | जो युवाओं के मनोरंजन के साथ-साथ बुजुर्गों का ज्ञान भी बाटें, जो महिलाओं की महत्ता के साथ-साथ पुरुषों का सम्मान भी स्वीकारे, जो बच्चों को सीख दे और बड़ों को नए ज़माने को अपनाने के तरीक बताये, जो धर्म जाती व परम्पराओं के साथ-साथ विज्ञान की ऊँचाइयों से अवगत कराये और विज्ञान किस हद तक हमारी अपनी भारतीय संस्कृति से जुड़ा है ये भी बताये, जो छोटे से अनोखे गावों की कहानियां सुनाये और जो तेज़ी से बदलते शहरों की रफ़्तार बताये, जो शर्म हया से लेकर रोमांस महसूस कराये और जो हमें अपनी आधुनिक भारतीय संस्कृति से मिलाये | सिर्फ इतना ही नहीं इस मासिक पत्रिका के मुख्य तीन उद्देश्य "युवाओं को हिंदी और समाज से जोड़े रखना, समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाने के लिए जागरूकता फैलाने और उन्हें दूर करने में युवाओं की भूमिका को बनाये रखना, और नए लेखकों को एक प्लेटफार्म देना" के अलावा हिंदी साहित्य को संग्रहित व् सुरक्षित करने के साथ साथ एक ऊँचाई देना भी है | इस पत्रिका की मुख्य संपादक व प्रकाशक अंकिता जैन हैं |