हमें आपका समय चाहिए इस बार हम हर पाठक से कुछ मांगने वाले हैं ! समय ! हाँ ! हमें समय चाहिए। आपका समय । हमारी पत्रिका पढ़ने के लिए थोड़ा समय । अगर आप कहते हैं कि हमें समय नहीं मिला । तो हम मानने वाले नहीं हैं; आप कहेंगे कि आप तो पीछे ही पड़ गये । हमारे पास समय नहीं है तो कहाँ से दें ? हम कहते हैं हमें तो सिर्फ 45 मिनट समय चाहिए। हाँ हमारी पत्रिका पढ़ने में शायद इससे अधिक समय न लगे, वो भी तीन महीने में । क्या आप 90 दिनों में 45 मिनट नहीं दे सकते हमें ? प्रत्येक दिन आधा मिनट का हिसाब आता है। आप हरेक महीने 15 मिनट दे दीजिए ! या 5 मिनट प्रत्येक दिन के हिसाब से 9 दिन । क्या सचमुच इतना समय नहीं है आपके पास ? जरा आप ही सोचें क्या आप इतना समय निरर्थक नहीं गँवा देते । प्रत्येक वर्ग का आदमी समय के अभाव का रोना रोता है । छात्र कहते हैं हमें कई जगह पढ़ने जाना होता है । शिक्षक कहते हैं हमें तो पढ़ाने से फुरसत नहीं मिलता । ऑफिस जाने वाले कहते है कब पढ़े ? यहाँ तक कि हमारे कई लेखक/ कवि/ रचनाकार कहते हैं समय नहीं मिला आपकी पत्रिका पढ़ने की । व्यवसायी कहते हैं हमें पढ़ने लिखने की फुरसत कहाँ ? हर कोई कुछ न कुछ बहाने बनाता है । हाँ ! हम यह आरोप लगाते हैं कि आप बहाने बनाते हैं । इसके लिए आप हमें जो सजा देना चाहें दे लीजिए । मगर समय हमें दीजिए । आप टीवी देखने के लिए, मोबाइल में गेम खेलने के लिए, अनर्गल गप्पें मारने के लिए घंटों दे देते हैं । हमें इससे कोई शिकायत नहीं । हम तो उस समय में से थोड़ा समय आप से अपना समझ कर माँग रहें हैं । कोई अपनों से जिद नहीं करेगा तो और किससे करेगा ? हम साहित्य के भिखारियों के लिए थोड़ा समय अगर आप दे देंगे तो आपका समय कम नहीं हो जाएगा जैसे किसी रास्ते के भिखारी को एक रुपया देने से हमारे धन पर कोई असर नहीं पड़ता। हमारी पत्रिका को नहीं तो किसी और साहित्य-पत्रिका को ही समय दीजिए, मगर समय दीजिए । जो हमें पहले से ही समय दे रहें उनका हम तहे दिल से आभार व्यक्त करते हैं। साधुवाद।
मरुतृण साहित्य-पत्रिका एक ऐसी लघु पत्रिका जो कोलकाता के बैरक पुर से सत्य प्रकाश ’भारतीय’ द्वारा राजेन्द्र साह के सहयोग से निकाली जा रही है । आकार में लघु लेकिन साहित्य के चयन में उकृष्टता बरतने की पूरी कोशिश की जाती है । कम समय में यह पत्रिका साहित्यकारों और पाठकों के पठन -पाठन और चर्चा में शामिल हो गई है ।