शिक्षा का महत्व उस समाज में किए जा रहे शोध की स्थिति से भी देखा जा सकता है । समाज के भीतर निकालने वाली पत्रिकाओं की स्थिति व उनकी तटस्थता को ध्यान में रखकर शिक्षा की महत्ता को स्थापित किया जा सकता है । वास्तव में पत्रिकाएँ किसी समाज की वाहक होती हैं । ‘द पर्सपेक्टिव जर्नल’ का यह तीसरा अंक आपके समक्ष प्रस्तुत है । इस अंक में समाज के विभिन्न पहलुओं को सम्मिलित करते हुए साहित्य और समाज दोनों को रेखांकित किया गया है । दरअसल साहित्य और समाज दोनों एक जैसे ही सोचते हैं । उन्हें लिपिबद्ध करना आवश्यक है । इस अंक पर आप सबकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतज़ार रहेगा ।