मैं रिंद हूँ महकशी की हर हद से वाकिफ हूँ सिमट जायूं मेह्कदे में तो मैं महकश कहाँ हूँ किसी को अब क्या कहें, क्यूँ आँखे रहती है नम भूलने को बहुत कुछ है,याद रखने को बहुत कम प्यार तुमने भी किसी ना किसी से किया होगा दर्द बाँट लोगे हम से कभी तो बुरा क्या होगा? कुछ तो खबर होगी मेरे हाले दिल की तुझे सुना हैं अब यह धड़कता है तो शोर नही होता. कुछ ऐसे चिराग रौशन हैं तेरी निगाहों में जल उठे हैं सब दिए जो बुझे थे हवाओं में बेवफाई हमने सीखी है अपने दिलरुबा से है नाज हमे फिर भी उसकी वफा पे