एक सहनशील, पितृभक्त, आज्ञाकारी, साहसी युवराज की कहानी जो राजकोष से एक चिट्ठीका मोल लाख टका स्वर्ण मुद्रा करवाने के अपराध में राजाज्ञा से राज्य से निर्वासित कर दिये जाने पर चिट्ठी में उल्लेखित व्यक्तियों की परख के लिए मिलता है तथा उसे अक्षरशः सही पाकर अपने शौर्य तथा पराक्रम से चक्रवृति सम्राट बन कर लौटता है।