दो पाटों के बीच नाटक संग्रह में संकलित नाटकों में मनुष्य के प्राकृतिक काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार आदि विकारों के कारण होने वाले परिवर्तनों पर बहुत ही गहराई से विचार कर निकटता से प्रहार किया गया है। परिस्थिति बदलने के साथ आदमी कैसे रूप बदलता है, इसका लेखक ने बेबाक चित्रण किया है।