यह किताब प्रेम, भक्ती और बलिदान का प्रतीक है जिसमे नायक नायीका के विरह मे अपनी उलझन, मजबूरी और चाहतें वयक्त करता है। नायक नायीका के यौवन और सुंदरता को शब्दों मे पीरोकर उसे एक नया रूप और नई पहचान देता है। इसमे नायक अपनी परिस्थीयों से जुझते हुए समाज के अन्य पहलूओं पर भी एक नजर डालता है और अपनी मोक्ष प्राप्ती की कामना करता है।