'यह किताब 'औरत = समाज' संदेश के साथ”साथ कई प्रश्नो का भी उतर देती है। जो कि हमारे रोजाना के जीवन में हमें हर जगह सुनने पडते है। या फिर हमें उनका सामना करना पडता है। जो कि धर्म, राजनीति, भेदभाव, सुख - दुख, छोटा - बडा, हिंसा आदि से जुडे होते है। क्योकि इस किताब का नाम 'औरत = समाज' है सो यह किताब यह भी समझाने और बताने का प्रयास करती है। कि क्यो 'औरत और समाज' दोनो बराबर होते है या फिर एक जैसे होते है। और क्यो दोनो की हालत और स्वभाव एक जैसा होता है। और दोनो की क्या भूमिका है इस संसार में या फिर समय के चक्र में।