कहा जाता है कि बोलकर कोई बात कहने से ज्यादा लिखकर कहने पर अधिक असरदार होती है. जहाँ बात लिखने वाले यानि लेखक की हो तो उसकी ज़ुबान क़लम ही होती है. वो जो भी समाज में देखता है, वो जो भी सोचता है उसे लिखने के लिए आतुर रहता है. "मेरी क़लम, मेरी आवाज़" के लेखक रूपेंद्र सिंह ने बी.टेक (रोहिलखण्ड यूनिवर्सिटी, बरेली), एम.टेक (दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, दिल्ली), किया है, अभी रूपेंद्र सिंह भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान, रूड़की (IIT Roorkee) से पीएचडी(PhD) कर रहे हैं.