हर दिन हम अपने आसपास कुछ नया होता पाते हैं| कहीं लोगों में बदलाव हुआ दिखाई देता है तो कहीं कोई जगह पूरी तरह बदली हुई दिखाई पड़ती है| कुछ बदलाव हमें बहुत भाते हैं तो कुछ को महसूस कर हमें दुःख होता है| हम चाहकर भी उन चीज़ों को बदलने से नहीं रोक पाते जो हमें एक ही तरह की चाहिए होती हैं| इसी तरह के कुछ बदलावों को काव्य के माध्यम से युवा रचनाकार अंकित भट्ट ने "बदलते दौर" में हमसे कहने की कोशिश की है|