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Drastikon
Drastikon
  • दृष्टिकोण
  • OnlineGatha
  • Language - Hindi

About Drastikon

कैसे ताल मिलाऊँ मैं कुछ तो मेरी मजबूरी है| कुछ मुझको जल्दी भी है। फूल बनाने की कोशिश में| कैसे कली खिलाऊँ मैं। कुछ दिल पर चोटें ज्यादा हैं| कुछ मन पहले से भरा हुआ। नई चोट दिल पर लाने की| कैसे गली बनाऊँ मैं।| कुछ तो जहन भी अलग-अलग है| कुछ मन की भी दूरी है। नजदीक रहा बेशक जीवन भर| कैसे पास बुलाऊँ मैं। कुछ तो दिल में उमंग नहीं है| कुछ मन पहले से मरा हुआ। नई चाल में आने वाला| कैसे ताश बनाऊँ मैं।| कुछ तो चुप्पी साध रखी है| कुछ मन की भी थाह नहीं है। उसका जहन बनाने वाली| कैसे बात बनाऊँ मैं। कुछ देर है सावन के आने में| कुछ धरती सारी तपी हुई है। धरती पर स्त्रोत बनाने वाली| कैसे लात बनाऊं मैं||