प्राणी की आकाँक्षा होती है कि उसे सद्गति प्राप्त हो और उसे मोक्ष मिले .वह जप, तप, हठ योग, यम नियम पर आधारित प्रभृत्ति कठोर विधियों से क्या यह सब संभव है ? व्यक्ति एक दो सीढियाँ चढ़ने में ही थक जाता है और विरले ही ज्ञान प्राप्त कर पाते हैं. ऋषि अष्टावक्र ने अपने ‘अष्टावक्र गीता’ के माध्यम से जनक को पात्र मानकर आत्मज्ञान का उपदेश दिया है जो सरल और सहज है. ऋषि अष्टावक्र के जीवन और उनके दर्शन पर आधारित ‘आत्म ज्ञान’ पाठकों को समर्पित है.