आचार्य सुदामा श्री कृष्ण के सहपाठी होते हुये भी निर्धन थे और पाठशाला में छात्रों को अक्षर ज्ञान कराते थे और इसी से घर का भरण पोषण करते थे | एक प्रश्न क्या अक्षर ज्ञान ही शिक्षा है,यह सोच उनके मन में समा गया, बस यही सोच कर उन्होंने राजा श्री कृष्ण के दरवार में गुरुकुल स्थापित करने का अनुरोध किया जिसे श्री कृष्ण ने सुदामा को ही कुलपति बना कर शिक्षा का उद्देश्य पूरा किया