Stay updated with our instant notification.
जब से होश सम्हाला ग़रीबी, मँहगाई, बेकारी, रिश्वतख़ोरी और अब नक्सलवाद, आतंकवाद के कुबड़े प्रश्नचिन्ह मेरे सामने खड़े थे। मैंने इनको खींचकर सीधा करने का प्रयास किया। मेरी यह कृति उसी प्रयास का परिणाम है।