प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी को एक निश्चित परिप्रेक्ष्य और कलात्मक आधार दिया । उनकी कहानियां परिवेश बुनती है । पात्र चुनती है । उसके संवाद बिकल उसी भाव-भूमि से लिए जाते हैं जिस भाव-भूमि में घटना घट रही है । इसलिए पाठक कहानी के साथ अनुस्तुत हो जाता है । इसलिए प्रेमचंद यथार्थवादी कहानीकार हैं । लेकिन वे घटना को ज्यों का त्यों लिखने को कहानी नहीं मानते । यही वजह है कि उनकी कहानियों में आदर्श और यथार्थ का गंगा-यमुनी संगम है ।
कथाकार के रूप में प्रेमचंद अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गए थे । उन्होंने मुख्यत: ग्रामीण एवं नागरिक सामाजिक जीवन को कहानियों का विषय बनाया है । उनकी कथायात्रा में श्रमिक विकास के लक्षण स्पष्ट हैं, यह विकास वस्तु विचार, अनुभव तथा शिल्प सभी स्तरों पर अनुभव किया जा सकता है । उनका मानवतावाद अमूर्त भावात्मक नहीं, अपितु उसका आधार एक प्रकार का सुसंगत यथार्थवाद है ।