यह पुस्तक लोगों में दयानंद जी को, उनके आर्य समाज एवं साहित्य को जानने, पढ़ने में रुचि, रुझान व जिज्ञासा पैदा कर सके इतनी कोशिश भर है। सत्य का स्वाद और प्रेम की सुगंध लगने की देरी है फिर तो मनुष्य भीतर, गहरा और गहरा उतरता जाता है। यह पुस्तक न्यौता, दस्तक और द्वार मात्र है। प्रारंभ है उनको जानने समझने के लिए, मंजिल नहीं लेकिन मंजिल का, यात्रा का प्रथम कदम ही बहुत महत्वपूर्ण है यदि वह गलत पड़ गया, तो गए। इसलिए अन्य अर्थों में यह पुस्तक महत्वपूर्ण है। उम्मीद है सत्य एवं सत्य के पुरोधा दयानंद जी को जानने का यह कदम आप में गहन अभीप्सा पैदा करेगा और आपकी यात्रा कभी इसके जरिए आगे अंजाम तक अवश्य पहुंचेगी। इसी आशा के साथ मुझे बीच से विदा करें, पुस्तक के पृष्ठ आपका इंतजार कर रहे हैं, पढ़े-गुने और गौर्वान्वित हों कि आप भी उसी धरा पर पैदा हुए हैं जहां दयानंद जैसे युग पुरुष ने जन्म लिया था। प्रेरणा लें व पहचानें अपने भीतर छिपी ऊर्जा और धर्म एवं देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को।