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यथार्थ का आलोक घिर घिर , कविताओं के भाव उर्वर, अतिरंनित मेरा मन निर्झर, 'प्रेम' का आह्वान फिर-फिर। मेरे जीवन की सुदंरते पुष्प बनी सारी स्मृतियां, सौरभ से भर भर जीवन की, 'यथार्थ' बनी सारी कृतियां।