बहादुर शाह ज़फ़र सिर्फ एक देशभक्त मुग़ल बादशाह ही नहीं बल्कि उर्दू के मशहूर शायर थे। उन्होंने बहुत सी प्रसिद्ध उर्दू शायरी लिखीं, जिनमें से काफी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के समय मची उथल-पुथल के दौरान खो गई। उनके समय में लाल किले में मुशायरे होते रहते थे, जिनमें आप भी शिरकत किया करते थे। ज़फ़र उस्ताद ‘जौक’ के शागिर्द हो गये थे, इसके बावजूद आपने अपने वक्त के मकबूल शाइरों ‘गालिब’ और ‘मोमिन’ जैसे उस्तादों से भी बहुत कुछ सीखा। आपकी शायरी में जो गम्भीरता है, उसके कारण आपका नाम उर्दू अदब के एक रौशन सितारे के रूप में बराबर याद किया जाता रहेगा। कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में॥