‘मीर’ की शायरी जहां एक ओर सीधी-सादी है, वहीं उसमें कहीं-कहीं कटुता भी दिखाई देती है। यूं तो ‘मीर’ की शाइरी में उनके आशिकाना मिज़ाज मिलते हैं, लेकिन उन्होंने इसके अलावा भी बहुत-कुछ लिखा है। ‘मीर’ का नाम आज भी बड़ी शिद्दत से लिया जाता है और आगे भी भविष्य में भी उर्दू अदब की एक रौशन मीनार के रूप में उतने ही शिद्दत के साथ याद किया जाता रहेगा।