सुरेश कुमार एक सजग कवि और ग़ज़लकार हैं । उनकी रचनाओं का बोध मूलतः भले रोमानी हो, लेकिन उनमें समसामयिक लोकाचरण सहज ही देखा जा सकता है । सुरेश की भाषा में जो रवानी है और शैली की अदायगी में जो नयी ऊर्जा और ताज़गी है, वह पाठकों में एक ख़ास किस्म का अपनापन पैदा करती है । जिसकी बदौलत सुरेश की रचनाएँ आम ज़बान पर चढ़ने का माद्दा रखती हैं । इन रचनाओं को पढ़ते हुए एहसास होता है कि सुरेश ने आरम्भ से ही मुहावरों की मौलिकता को तराशा है ।
वास्तव में सुरेश की रचनात्मकता में एक ज्वलनशीलता भी है जिसे हम धधकती हुई आग कहते हैं । प्रेम या प्रेम की पीड़ा तो महज आवरण है, इन ग़ज़लों का । सुरेश की सम्वेदनाओं का आधार मूलतः विद्रोही और प्रगतिपरस्त है ।