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मेरे मस्तक की नसों में घूमते हैं धूमकेतु आख़िर को मेरा जन्म भी तो हुआ होगा किसी हेतु प्रश्न ऐसा प्रश्न फिर-फिर कौंधता है और मुझको रौंदता है। हाथ में लेकर हथौड़ा और घन