यह जीवन एक अवसर है, मौका है, उस एक को पा लेना का, इसलिए यह जीवन जीना एक कला है। मन के लुप्त होने का या भीतर जाने का कारण, प्रेम भी हो सकता और प्रार्थना भी, प्रकृति भी हो सकती है, पीड़ा भी। इन सबके जरिए भी इंसान का मन अंदर की ओर रुख करता है, लेकिन यह सब परछाई हैं उस ‘एक’, परम ‘एक’, परमात्मा की। तभी तो साधकों ने कहा है ‘प्रेम ही है भगवान, जीवन ही है प्रभु, पीड़ा ही है पूजा, प्रकृति ही है परमात्मा आदि-आदि।‘