शिव ही समस्त जगत को उत्पन्न करते हैं, धारण करते हैं और समय पूरा होने पर संहार करते हैं। वे महाकाल स्वयं शरीर में प्राण के रूप में व्यक्त होते हैं। समस्त जगत के प्राणों के प्राण वे स्वयं हैं। मृत्यु के माध्यम से उन्हें जान लेने वाले महापुरुष के प्राण उन्हीं में विलीन हो जाते हैं, जो होते हुए भी मानो नहीं होते। ऐसे समय के रूप में अनुभव में आने वाले शिव से समस्त का नैसर्गिक सम्बन्ध है।