इस पुस्तक के द्वारा हम ऐसे सच को दुनिया के सामने लाना चाहते है जो सर्वथा सच है । परन्तु वे सच की इस पुरुष शासित समाज पर हमेशा चोट करते है । एक बार रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे महाविद्वान ने कहा था, ''मनुष्य के अत्याचार से भयभीत होकर सत्य को विकृत मत करो।" इस पुस्तक को लिखने के प्रति हमारा आशय आदमी के अहम् पर कुठाराघात करना नहीं है परन्तु उस सोई नारी को जाग्रत करने की कोशिश है जो इस दम्भी समाज में जानवर से बदतर जीवन जी रही है। ऐसा करते हुए यदि मैं एक भी महिला को जाग्रत कर पाई तो स्वयं को धन्य समझूंगी, मानूंगी कि मेरी माता के जीवन से मुझे जो प्रेरणा मिली वह सार्थक थी।