‘प्रहरी ओ देश’ के नामक अपनी सम्पूर्ण राष्ट्रीय कविताओं का यह संग्रह आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अतीव प्रसन्नता हो रही है। इन कविताओं के इस रूप में आकार लेने की एक पृष्ठभूमि है।
संग्रह में गीत के नए आंदोलन के अन्तर्गत लिखी गई राष्ट्रीय रचनाओं को शामिल करने का विचार त्यागना पड़ा, क्योंकि सेना के जवानों तथा सेना में भर्ती हो रहे या होने वाले आम युवा-जन‒जिनके हाथों तक इस पुस्तक को पहुंचाना इस प्रकाशन का अभीष्ट है‒के लिए ये रचनाएं समझ से परे होतीं, क्योंकि उनकी बिम्बधधर्मिता और अपनाया गया शिल्प-विधान सैनिकों के लिए ‘आग बोलती है’ की कविताओं में प्रयुक्त सहज बिम्बों और शिल्प से भी अधिक दुरूह होता।