पद्म का अर्थ है – ‘कमल का पुष्प’। चूंकि सृष्टि-रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान नारायण के नाभि-कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पद्म पुराण की संज्ञा दी गई है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित सभी अट्ठारह पुराणोंकी गणना में ‘पद्म पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त हैं श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जा सकता है। सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वतंर और वंशानुचरित – पद्म पुराण इन पांच महत्वपूर्ण लक्षणों से युक्त है। भगवान् विष्णु के स्वरूप और पूजा-उपासना का प्रतिपादन करने के कारण इस पुराण को वैष्णव भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्न पौराणिक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से भगवान् विष्णु से संबंधित भक्तिपूर्ण कथानकों को अन्य पुराणोंकी अपेक्षा अधिक विस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया है।