इसी काव्य संग्रह
शब्द कभी-कभी ठहर जाते हैं
लेकिन भीतर ही भीतर सँवर जाते हैं
ठहरा हुआ शब्द मौन नहीं
जीवन काव्य उसमें गौण नहीं
जीवन शब्दों से चलता है
मौन पर कौन ठहरता है।
शब्दों पर चलने वाले
तो पाखी हैं।
मौन के साथ जो ठहर जाएं
वे ही सच्चे साथी हैं।