सुरेन्द्र मलिक ‘गुमनाम’ की गज़लें समकालीन उर्दू शायरी में अपना एक अलग मिजाज़ व अन्दाज़ रखती हैं। मानव मन की भावुकता और उसको ज़ाहिर करने की सुरेन्द्र मलिक ‘गुमनाम’ की अपनी ही खासियत है जो उन्हें दूसरों से अलग करके देखने और समझने को मजबूर कर देती है।
इश्क में दोजहाँ की राहत है
आशिकी भी तो एक इबादत है
तथा
राहे-वफा में हमको रुसवाइयाँ मिलीं
देखा पलट के जब भी, परछाइयाँ मिलीं