बेकल उत्साही हमारे दौर के उन शायरों और कवियों में से हैं, जिन्हें किसी वाद (Ism) में नहीं बाँधा जा सकता । यह काम आलोचकों का है कि वे उनमें किसी वाद की तलाश करें । मुख़्तसर ये है कि वे जनता के कवि हैं । देश की अस्सी प्रतिशत जनता जो आज भी गाँव-देहात से तअल्लुक़ रखती है, वे उनके सच्चे प्रतिनिधि हैं । इसीलिए उनमें हमें और आपको ‘कबीर’ और ‘नज़ीर’ नज़र आते हैं और कभी-कभी ‘मीर’ के सादगी भरे अन्दाज़ भी ।