प्रस्तुत संकलन एक व्यंग्य काव्य है, यह आपको हंसायेगा भी और समाज की वास्तविकता से भी अवगत करायेगा। इसमें एक तरफ आम आदमी अर्थात लोक है, दूसरी तरफ तंत्र अर्थात सरकारी मशीनरी है। इस संकलन का उद्देश्य किसी की बुराई या आक्षेप करना नहीं है। यह यथार्थ का प्रकटीकरण व प्रत्यक्षीकरण है। लोगों के सामने व्यंग्य काव्य के माध्यम से वास्तविकता को लाना है, जिससे व्यवस्था (सिस्टम) में हम और सुधार कर सकें, भ्रष्टाचार से छुटकारा मिले, आम आदमी और तंत्र (प्रशासन) में क्या सम्बन्ध होना चाहिए और बन क्या गये हैं, हम अपने मूल उद्देश्यों से कितना भटक गये हैं, इसे काव्य के माध्यम से आम आदमी के सामने लाना इस पुस्तक का मूल उद्देश्य है। यदि प्रस्तुत पुस्तक किसी एक व्यक्ति को भी जागृत या संवेदित कर सके तो इस पुस्तक की सार्थकता मानूंगा।