काश...हम’ जीवन के लम्हों सफर के बाद इन्सान अपनी कथनी-करनी को चाहे सार्वजनिक रूप से स्वीकार ना करता हो परन्तु, मेरा यह मानना है कि हर व्यक्ति अपने व्यवहार करम, एवं कर्त्तव्यों पर खुद से जरूर सवाल करता है कि काश! मैं ऐसा न करके कुछ अलग कर सकता था। या अपने करमों की समीक्षा करते समय खुद की गलतियों को खुद स्वीकारता जरूर है।
इस ख्यालात की कसौटी पर कुछ गज़लें, गीत एवं कविताएं आपके समक्ष प्रस्तुत है मेरी नहीं काव्य संकलन ‘काश...हम’। पुस्तक को पढ़ने वाले अपने विगत जीवन को याद कर घटनाओं को मेरी कविताओं, गज़लों से जोड़ सके तो मेरा यह प्रवास सफल हो जाएगा।