प्रवीण की कविताओं का फलक विस्तृत है। विविध विषयों पर उसने काव्य रचना की है। उसके हास्य में हास्य मात्रा हँसाने के लिये नहीं है अपितु साभिप्राय है। उसके पीछे राष्ट्र, समाज या व्यक्ति की पीड़ा अन्तर्निहित है। कई बार तो वह थोड़े से शब्दों में बहुत बड़ी बात कहकर ‘सूक्ति’ की निर्मित्ति कर देता है। उसके हास्य में विरक्त आकाश का प्रकाश, शुक्ल पक्ष की चाँदनी सी शीतलता और धवलता है। व्यंग्य में प्रवीणता है, प्रगल्भता है, कसमसाहट है क्षोभ या क्रोध नहीं। व्यंग्य को सीमा में रखकर सफलता से सम्प्रेषित करना कठिन कार्य है जिसे प्रवीण शुक्ल ने बखूबी किया है।