रे मन! हरि का सुमिरन कर ले ।
पाप-गठरिया हल्की कर के
पुण्य-गगरिया भर ले ।
लोभ, मोह, छल, दंभ भुलाकर
जीवन बीच सुधर ले ।
दुष्कर्मों की धूल झाड़कर
मूरख जरा संवर ले ।
गहरी नदिया भंवर भरी है
सत के घाट उतर ले ।
हरि सुमिरन में ध्यान लगा ले
‘जोगी' भव से तर ले ।