गुरु रामदास जी ने सिख धर्म के लोगों के विवाह के लिए आनंद कारज 4 फेरे (लावा) की रचना की और सिक्खों को उनका पालन और गुरुमत मर्यादा के बारे में बताया। यानी गुरु रामदास जी ने सिख धर्म के लिए एक नयी विवाह प्रणाली को प्रचलित किया। गुरु रामदास जी ने अपने गुरुओं के द्वारा दी गई लंगर प्रथा को आगे बढ़ाया। उन्होंने पवित्र सरोवर ‘सतोषसर’ की खुदाई भी आरंभ करवाई। इन्हीं के समय में लोगों से ‘गुरु’ के लिए चंदा या दान लेना शुरू हुआ था। इतने अच्छे स्वभाव के व्यत्तिफ़ होने के कारण सम्राट अकबर भी उनका सम्मान करता था।