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हंसों, तो बच्चों जैसी हंसी, हंसो तो सच्चों जैसी हंसी। इतना हंसो कि तर जाओ, हंसों और मर जाओ। इसी पुस्तक से जिसके लेखक अशोक चक्रधन ने हास्य से सराबोर काव्य साहित्य अपने पाठकों के लिए परोसा है।