पांच बजे सुबह अमर घर पहुंचा। शरदपुर के इलाके के एक मोहल्ले मेहरा बाग में उसके पास एक कमरे और एक दालान का घर था, जो सस्ते किराए पर मिल गया था। घर में ही हैंडपम्प था। रसोई भी थी और बाथरूम और ‘जरूरतों’ के लिए दरवाजे के पास ही इन्तजाम था।
अमर ने दरवाजे पर दस्तक दी तो इस तरह दरवाजा खुल गया, जैसे कोई उसके दस्तक देने के ही इन्तजार में खड़ा हो।
दरवाजा खोलने वाली उसकी बहन रेवती थी। ऐसा लगता था, उसकी आंखें जागते रहने से लाल हो गई हों।
अमर ने मुस्कराकर कहा‒“अरे, आज तू इतने सवेरे कैसे जाग गई ?”
-इसी उपन्यास मे से