‘गुलदस्ता’ दरअसल ऐसी ही स्वतः स्फूर्त रचनाओं का संकलन है, जो दिल से निकली हैं, दिमाग से नहीं। हिन्दी संस्कार, देशकाल, शब्दबाहुल्य, गजल फार्म से निकटता तथा विशेषकर हिन्दी व्याकरण से संचालित होने के कारण ही इन्हें ‘नयी हिन्दी गजलें’ कहा गया है। इनमें उर्दू गजलों से कतिपय भिन्नता ढूंढ लेना संभव है। ऐसा संभावित और स्वाभाविक भी है।