मैं हैरान होकर उसे देख रहा था । कुछ शक भी हो रहा था । आखिर पूछ ही बैठा-तुम निशिकांत हो न?
शायद निशिकांत ने भी मुझे पहचान लिया था । दूर खिसकने की कोशिश करते ही मैंने उसका हाथ पकड़ लिया । बोला-तुम निशिकांत ही हो न? निशिकांत पहले तो मानने को तैयार नहीं हुआ, पर मैंने भी उसे कुछ बोलने का मौका नहीं दिया । बोला-झूठ बोलने की कोशिश मत करो । अभी तक तुम्हारी आदत सुधरी नहीं । बोला, कहां रहते हो?