प्रार्थना पण्डित की नज्मे मुकद्दस कोशिश है। ऐसी कोशिश जिसमे शेर कहने के लिए मशक्कत नही करनी पड़ती, वे उतरते हैं जैसे कोई ख्वाब उतरता है पलको पर हौले-हौले। इस बेटी की कविता या पोएट्री मे जरूरी ' डेन्सिटी ' है, ' कन्सर्न ' है। वे सिर्फ दुलार और इमेजिनेशन की नज्मे नहीं हैं, उनमें बड़े होते दरख्त की उम्मीदे भी है । यह सब प्रार्थना की कविता के लिए बड़ा आसमान और बड़ा हौसला दिखाता है। इसकी उम्र के साथ कविता भी बड़ी हो, यही दुआ है।