बिराज ने पति को सर्वस्व मानकर उसकी सेवा की, पूजा की लेकिन जब उसी पति ने उसकी सतीत्व पर संदेह किया तो वह उसे छोड़कर चल दी।
उसकी एक ही साध थी पति के चरणों में प्राण विसर्जन और अंत में उसकी यह साध पूरी हो गई| जब नीलाम्बर भिखारिन, बीमार और दुर्बल बिराज को उठाकर घर ले गया।