प्रभावशाली दशक, भारतीय इतिहास के सर्वाधिक आकर्षक काल में से एक — 1970 के दशक पर आधारित है। यही वह समय था, जब प्रणब मुखर्जी ने स्वयं को एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में वचनबद्ध करने का निर्णय लिया। यही वह समय भी था, जब देश ने स्वयं को ऐसी चुनौतियों से घिरा पाया, जिन्होंने भारत में प्रजातंत्र के आधार को सशक्त बनाया। भारत ने 1971 में, पूर्वी पाकिस्तान द्वारा अपनी आजादी के लिए लड़ी जा रही जंग में अपना सहयोग देते हुए, आजादी के प्रति अपनी वचनबद्धता का प्रदर्शन किया। भारत को स्पष्ट रूप से व तेज़ी से कुछ कदम उठाने थे। 1975 में, आपातकाल की घोषणा की गई, जिसे सार्वजनिक रूप से आलोचना तथा सामाजिक अशांति का सामना करना पड़ा। अंत में, 1977 में भारत ने गठबंधन की राजनीति का प्रवेश देखा, इसके साथ ही जनता पार्टी सत्ता में आई। यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था। इस उथल—पुथल से भरे दौर के साक्षी तथा हिस्सेदार बने प्रणब मुखर्जी, बहुत ही शानदार ढंग से, एक इतिहासकार की सावधानी तथा अंतर्दृष्टि के साथ, इन वर्षों की प्रमुख घटनाओं तथा एक नए देश बांग्लादेश के जन्म तथा इसके आसपास के विकास की घटनाओं का ब्यौरा देते हैं। बीच—बीच में उन्होंने मुक्त भाव से, दशक के प्रभावशाली नेताओं के साथ अपने संपर्क व सहयोग तथा इंदिरा गांधी के साथ अपने सद्भाव का उद्घाटन करते हुए, उन सभी कठोर निर्णयो का भी वर्णन किया है, जो उन्हें देश के प्रति निष्ठा बनाए रखने के लिए लेने पड़े। प्रभावशाली दशक, आधुनिक भारतीय इतिहास की इस संकटमयी तथा अशांत अवधि में झांकने के लिए एक प्रत्यक्ष वातायन उपलब्ध करवाती है। प्रभावशाली दशक, तत्कालीन भारतीय इतिहास का सर्वाधिक आंतरिक प्राधिकरणी अभिलेखन है, जिसे एक महान राजनेता तथा नीतिज्ञ द्वारा प्रस्तुत किया गया है।