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कुछ अपनी कही आपकी कुछ उसकी कही है पर इसके लिए यातना क्या-क्या न सही है भटका कहाँ-कहाँ न अमन-चैन के लिए थक-थक के मगर घर की वही राह गही है दस्तक दी किसी दर पे बयांबां में रात को आवाज़-सी आदमी कि यहाँ कोई नहीं है