मनुष्य के जन्म का मूल उद्देश्य है अपने मनोविकारों पर विजय प्राप्त कर आवागमन के माया जाल से मुक्त होना । तीर्थंकरों ने जिस प्रकार अपनी इंद्रियों को अपने वशीभूत कर, आत्मजयी बनकर "जिन" की उपाधि धारण की, उन्हीं महान अरिहंतो की जीवन कथा कहती यह पुस्तिका पाठक को दिव्यानंद की अनुभूति कराते हुए मानव जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करने का रास्ता इंगित करती है।