क्या आपने इस बिंदु पर सोचा है कि व्यक्ति क्रोध उस पक्ष पर उतरता हैं है जो दुर्बल या कमजोर हो, अधिक शक्तिशाली पक्ष पर नहीं । कारण क्या है? कारण यही हैं कि शक्ति दुर्बल पक्ष को हिंसा का पात्र बनाती है । बाघ मृग को दबोचता है , मृग बाघ को नहीं ।
देखा जाए तो हजारों वर्षों के अपने इतिहास में मानव-समाज भी मृगों और बाघों के बीच विभाजित होना चला गया है। यह विभाजन धन और सम्पन्नता के अपमान बंटवारे की नींव पर भी हुआ, पदों और महत्ता की असमानता के कारण भी, शारीरिक शक्ति के असंतुलन पर भी, समाज के वर्गीकरण के कारण भी। सारांश यह है कि धीरे-धीरे समाज का स्वरूप ही कुछ ऐसी बन गया कि हिंसा के लिए संभावनाएं बनती चली गई।
हिंसा के जितने रूप समाज में इस समय विद्यमान हैं, लगभग उन सभी की समीक्षा इस पुस्तक में की गयी हैं और बताया गया हैं की मानव-समाज में दिखाई देने और दिखाई न देने वाली प्रवृत्तियाँ हैं, जो मानव-प्राणी और मानव-समाज को प्रदूषित करती जा रही हैं । यह पुस्तक केवल हिंसा को ही चिन्हित नहीं करती, इससे ऊपर उठने को प्रेरणा भी देती है ।