मधुप जी के इस संग्रह की कविताओं से गुज़रते समय आप महसूस करेंगे कि उन्होंने अपनी कविताओं में शब्दों की फिजूलखर्ची नहीं की है। उन्होंने अपनी कविताओं को एक विशेष रचना प्रक्रिया से गुजरते हुए लिखा है। उन्हें अपनी कविता के माध्यम से जो कहना है वह उस विचार से सम्बंधित विषय-वस्तु को पहले अपने मस्तिष्क में बिठाते हैं और फिर जिस प्रकार कोई अचूक निशानेबाज अपने ‘टारगेट’ पर निशाना साध देता है, उसी प्रकार अपनी कविताओं के शिल्प द्वारा, विषय वस्तु को उत्कृष्टता के शिखर पर ले जाकर उसकी प्रस्तावना प्रस्तुत कर देते हैं।